भारत में गुलामी-----

भारत में गुलामी-----
मनुष्य ने सबसे पहले कुत्ते को मित्र बनाया फिर स्वार्थवश उसे गुलाम बनाया और ऐसा गुलाम बनाया कि कुत्ता मनुष्य के सामने लाचार हो गया और इतना लाचार हो गया कि मनुष्य उसे ठंडे मारता है तो भी वह पूंछ हिलाते हुए डंडे खाता है, कुछ भी हो जाय लेकिन अब वह मनुष्य की गुलामी नहीं छोड़ेगा....
किसान ने प्रेम से सांड़ को अपने नजदीक किया फिर उसे अपने काम के लिए गुलाम बनाया और इतना गुलाम बनाया कि जो दूध उसके बच्चे के लिए था उसे अपने बच्चे को पिलाया और खुद पिया इतना ही नहीं बल्कि उसकी नसबंदी करके उसे बैल बना दिया फिर भी सांड ने विद्रोह नहीं किया किसी समय मदमस्त सांड रहा यह प्राणी इतना बैल बन गया कि  अब उसे बैलगीरी में ही आनंद महसूस होने लगा वह उसकी बैलगीरी नहीं छोड़ेगा अर्थात गुलामी नहीं छोड़ेगा.....
धोबी ने गधे को पकड़कर काम पर लगाया गधे ने विरोध जरूर किया लेकिन भरपेट भोजन मिलने की वजह से गधा भी खुश हो गया धोबी ने उसकी कमजोरी पकड़ ली और भोजन भी कम कर दिया गधे ने सहन किया  गधा धीरे धीरे धोबी का गुलाम हो गया और अब तो गधे को गुलामी की ऐसी आदत पड़ गई है कि उसे लगता ही नहीं कि वह धोबी का गुलाम है.....
घोड़े के दौड़ने का वेग और रुआब देखकर सैनिक ने घोड़े को पकड़ा उसकी पीठ पर बैठा घोड़े ने पूरी ताकत से उसका विरोध किया किन्तु अंततः सैनिक ने कभी प्रेम से कभी चाबुक मारकर उसे वश में किया लड़ाई करना सैनिक की जरूरत थी घोड़े की नहीं पर धीरे धीरे सैनिक ने घोड़े को गुलाम बनाया और अब घोड़ा सैनिक की गुलामी करने में अपनी शान समझने लगा किन्तु है तो वह सैनिक का गुलाम ही, गुलामी उसके दिमाग पर इस कदर छा गई कि शादी की बारात में बारातियों के सामने वह नाचता है किन्तु गुलामी से मुक्त होने का कभी प्रयत्न नहीं करता.....
पुराने जमाने में जंगल से बड़ी-बड़ी लकड़ियां लाने में कठिनाई होती थी किन्तु इंसान ने दिमाग चलाया।
हाथी को प्रेम से अपने नजदीक लाया उसके बदन पर हाथ फिराया और धीरे धीरे उसे गुलाम बनाया अब यह महावत इस शक्तिमान प्राणी से बड़े बड़े काम कराने लगा, पहले वह इसे जंजीर से बांधता था किन्तु अब हाथी नाम के इस गुलाम को रस्सी से बांधता है क्योंकि हाथी अब महावत का गुलाम बन गया है.....
गुलाम बनाने की प्रक्रिया अत्यंत प्राचीन है यह प्रक्रिया मनुष्य ने ही निर्माण किया, इस प्रक्रिया द्वारा शक्तिशाली मनुष्यों ने शक्तिहीन लोगों को
व बुद्धिमान मनुष्यों ने बुद्धिहीन लोगों को गुलाम बनाया व अपने लिए इस्तेमाल किया इसके बहुत सारे उदाहरण इतिहास में मिल जायेंगे....
जानवरों ने कभी जानवरों को गुलाम नहीं बनाया , जानवरों द्वारा जानवरों को गुलाम बनाने का कोई उदाहरण नहीं मिलता किन्तु मनुष्यों ने मनुष्यों को गुलाम बनाया है....
जब जब गुलामों को अवसर मिला तब तब उन्होंने अपने मालिकों को खत्म कर दिया और मुक्त हो गए ऐसे भी बहुत सारे उदाहरण इतिहास में मिलते हैं।
किन्तु जानवर मनुष्य के विरुद्ध ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि उसकी बुद्धि सीमित है।
जब यहां के बुद्धिमान किन्तु धूर्त लोगों को ऐसा लगने लगा कि अब इसके आगे सामान्य मनुष्य को गुलाम बनाए रखना संभव नहीं है तो इन धूर्त लोगों ने मनुष्य को गुलाम बनाए रखने के लिए ईश्वर नाम की संकल्पना का सहारा लिया और मनुष्यों को गुलाम बनाया, आज भी लोग ईश्वरीय संकल्पना के गुलाम बने हुए हैं इसी कारण मंदिर में एक पत्थर को करोड़ों रुपयों का दान देकर ईश्वर के नाम पर अपने मालिक के जीने और उसके एशो-आराम की व्यवस्था आज भी गुलाम लोग कर रहे हैं.....
आज कोरोना वायरस ने यह स्पष्ट दिखा दिया है कि इस दुनिया में कोई ईश्वर अल्लाह गाॅड नहीं है क्योंकि यदि होता तो अपने बंदों, भक्तों, अनुयायियों के लिए आज जरूर दौड़कर आया होता,आज ईश्वरीय संकल्पना का ढोंग स्पष्ट होकर दूध का दूध और पानी का पानी हो चुका है फिर भी ईश्वर परमेश्वर संकल्पना के गुलाम गुलाम ही बने रहेंगे क्योंकि ईश्वरीय संकल्पना के माध्यम से उनकी बुद्धि को कुंठित कर दिया गया है अब इनको भी कुत्ते जैसी,बैल जैसी,गधे जैसी, घोड़े जैसी व हाथी जैसी ही गुलामी की आदत पड़ चुकी है,जिसके कारण जीवन के महत्वपूर्ण घटक समय,श्रम, बुद्धि व पैसा इस अनुत्पादक कार्य पर बर्बाद हो रहा है।
इसीलिए बाबा साहेब ने कहा था कि....
"गुलाम को गुलामी का एहसास करा दो फिर वह विद्रोह करके उठेगा".....
किन्तु विद्रोह वही करता है जो खुद को गुलाम समझता है। बाब साहेब द्वारा दलितों को गुलामी का एहसास कराने के कारण समाज में मेरे जैसे अनेक लोगों ने ईश्वरीय गुलामी के विरुद्ध विद्रोह किया और ईश्वर को एक झटके में फेंक दिया ।
भारत में ईश्वरीय संकल्पना का उपयोग  लोगों को स्थायी गुलाम बनाने के लिए किया गया है इसलिए इस गुलामी से मुक्त होने के लिए ईश्वरीय संकल्पना को फेंक देना यह समय की मांग है।
ईश्वरीय संकल्पना को फेंक देने से बहुजन समाज ब्राह्मणों की गुलामी से निश्चित ही मुक्त हो जायेगा अन्यथा उसी गुलामी में ही सड़ता रहेगा.....
प्रमोद मून
मराठी से हिन्दी अनुवादक
चन्द्र भान पाल (बी एस एस)


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