"मा.गणेश सिंह पटेल की चिट्ठी बीजेपी ओबीसी सांसदों के लिये बनी: गले की फांस"

"मा.गणेश सिंह पटेल की चिट्ठी बीजेपी ओबीसी  सांसदों के लिये बनी: गले की फांस" 


      सतना,मध्य प्रदेश से सांसद श्री गणेश सिंह पटेल जी की एक चिट्ठी सोशल मीडिया पर आज कल काफी चर्चा में है और राजनैतिक गलियारों में एक नई प्रकार की हलचल/सनसनी पैदा किए हुए है।यहां उल्लेख करना जरूरी है कि इन्हे 2017 में ओबीसी कल्याण संसदीय समिति का चेयरमैन बनाया गया था।इस समिति ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण के संदर्भ में ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर की औसत वार्षिक सकल आय सीमा (ग्रॉस टोटल इनकम) आठ लाख रूपए से बढ़ाकर पंद्रह लाख रूपए की सिफारिश की थी और यह भी सिफारिश की थी इस आय की गणना में "वेतन और कृषि" से होने वाली आय को शामिल न किया जाए, जैसा कि क्रीमी लेयर की मूल परिभाषा देते समय तत्कालीन गठित विशेषज्ञ समिति ने तय किया था।उन्होंने इसके पीछे जो तर्क दिया वह यह है कि"यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो ओबीसी आरक्षण की परिधि से पूरी तरह बाहर हो जाएगा और ओबीसी के लिए आरक्षित 27% सीटें कभी भर नहीं पाएगी।अभी तक ओबीसी के बैकलॉग की कोई भर्तियां भी नहीं हो पाई है।इसलिए ओबीसी का 27% आरक्षण पूरा करने के लिए  क्रीमी लेयर की आय सीमा बढ़ाना और उसमें वेतन और कृषि से होने वाली आय शामिल न करना वर्तमान समय की मांग है और ऐसा करना ओबीसी के कल्याण के लिए बहुत जरूरी भी है। इस समिति की सिफारिशों पर कोई चर्चा न करते और ध्यान न देते हुए 2019 में सरकार के डीओ पीटी(डिपार्टमेंट ऑफ पर्सोनेल एंड ट्रेनिंग) ने अवकाश प्राप्त आईएएस पं.भानु प्रताप शर्मा की अध्यक्षता में ओबीसी की क्रीमी लेयर के लिए निर्धारित आय सीमा को संशोधित करने के लिए एक और समिति गठित कर दी।" ऐसी स्थिति में एक ही विषय पर दो समितियों के गठन के औचित्य पर आरक्षण विरोधी वर्तमान सरकार की मंशा पर सवालिया निशान खड़ा होना बहुत स्वाभाविक हो जाता है। "यह पं. बीपी शर्मा वही है, जिन्होंने सोनभद्र जिले के "उम्हा- सिपही" गांव के आदिवासियों की जमीन अपनी पत्नी श्रीमती विनीता शर्मा के नाम हस्तांतरित कर दी थी,जब वह वहां के जिलाधिकारी थे।पिछले साल इसी जमीन पर कब्जे को लेकर हुए नरसंहार में वहां के दस आदिवासियों की नृशंस हत्या की बात अभी लोग भूल नही पाए हैं।
   बीजेपी के सांसद ने संसद के सभी ओबीसी सांसदों को चिट्ठी लिखकर ओबीसी के कल्याण के लिए अपनी समिति की सिफारिशों की सामूहिक व व्यक्तिगत पैरवी के लिए निवेदन किया है। इससे संसद के बीजेपी के सभी ओबीसी सांसद किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में चले गए हैं।उन्हें अब यह डर सताने लगा है कि वे श्री गणेश सिंह पटेल जी की बात के समर्थन के लिए पी एम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का सामना करने के लिए शक्ति और साहस कैसे जुटाएं! यदि वे ऐसा करते हैं तो सरकार के पीछे काम कर रही, आरक्षण विरोधी शक्ति "आरएसएस" अगले चुनाव में उनका पत्ता साफ करा सकती है।श्री गणेश सिंह पटेल जी की चिट्ठी बीजेपी के ओबीसी सांसदों के लिए गले की राजनीतिक हड्डी बनती नजर आ रही है जो न तो निगलते बन रही है और न ही उगलते बन रही है।बीजेपी में रहते हुए(जल में रहकर मगर से बैर) सांसद गणेश सिंह जी के इस साहसिक कदम की जितनी तारीफ की जाए,वह कम है।
    ओबीसी के समस्त सांसदों और ओबीसी की राजनीति करने वाले सभी राजनैतिक दलों की यह सामाजिक और राजनैतिक जिम्मेदारी बनती है कि इस मौके पर ओबीसी के आरक्षण के लिए श्री गणेश सिंह जी की सिफारिशों के लागू करने के लिए सरकार पर सामूहिक दबाव बनाएं।यदि सरकार नहीं मानती है तो एससी- एसटी के राजनीतिक आरक्षण की तरह ओबीसी के लिए भी राजनीतिक आरक्षण का एक नया मुद्दा बनाकर नए सिरे से ओबीसी की सामाजिक  राजनीति को धार देने का एक सुनहरा अवसर है।क्योंकि ओबीसी के आरक्षण के लिए बने काका कालेलकर आयोग और वीपी मंडल आयोग की सिफारिशों में लोक सभा और विधान सभाओं में ओबीसी के आरक्षण की सिफारिश की गई थी।
     ओबीसी के सांसदों और दलों के पास यह सुनहरा मौका है जब एससी-एसटी के सांसदों और दलों को एक साथ लेकर राज्य सभा और प्रदेश की विधान परिषदों में भी ओबीसी और एससी-एसटी के राजनीतिक आरक्षण की भी एक संयुक्त बहस का मुद्दा बनाकर सरकार के ऊपर सामाजिक व राजनैतिक दबाव बना कर पिछड़े वर्गों और दलित समाज की सामाजिक-राजनैतिक चेतना और सामंजस्य को भी एक नई दिशा व दशा प्रदान की जा सकती है।
      इस मौके पर ओबीसी और दलित समाज की राजनीति करने वाले सभी दलों और उनके नेताओं से एक सामाजिक और राजनीतिक आग्रह बनना स्वाभाविक हो जाता है कि वे अपने समस्त राजनैतिक दुराग्रहों और पूर्वाग्रहों को दर किनार कर सामाजिक हित में एक प्लेट फार्म पर आकर आरएसएस नियंत्रित बीजेपी की आरक्षण और संविधान विरोधी संस्कृति पर अंकुश लगाने का काम करने की दिशा में सामूहिक ठोस राजनैतिक एजेंडे पर केन्द्रित होकर अगला राजनीतिक कदम उठाएं। अन्यथा आने वाले भविष्य में न तो डॉ.आम्बेडकर द्वारा दिया गया संविधान बचेगा और न ही आरक्षण।निजीकरण के माध्यम से वर्तमान सरकार ने आरक्षण को अप्रत्यक्ष रूप से धीरे धीरे खत्म करने की नींव तो बहुत पहले ही रख दी है। यदि विपक्षियों ने मिलकर आरएसएस संचालित वर्तमान सरकार पर राजनैतिक अंकुश लगाने का प्रयास नहीं किया तो आने वाले भविष्य में ओबीसी और एससी- एसटी के बच्चे सरकारी चपरासी की नौकरी तक को तरसते नजर आएंगे।


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