“नयी शिक्षा नीति बनाम कोरोना का धंधा” : प्रमोद कुरील (पूर्व सांसद-राज्य सभा) 

“नयी शिक्षा नीति बनाम कोरोना का धंधा”



आज कल नयी शिक्षा नीति को लेकर तमाम सोशल मीडिया पर बहुत तनाव की स्थिति है।   


 


नयी शिक्षा नीति (2020) क्या है, इसका क्या उद्देश्य है इसे समझने के लिए कोई बहुत बड़ी रिसर्च की ज़रूरत नहीं है।  


 


ये नयी शिक्षा नीति वास्तव में पिछली शिक्षा नीति (शिक्षा का अधिकार कानून-2009) का ही “अगला चरण” है। इस (कथित) “शिक्षा का अधिकार कानून” के माध्यम से पिछले 10 वर्षों में इस देश के बहुसंख्य दलित पिछड़े समाज की शिक्षा की कमर तोड़ने का सफल अभियान चलाने के बाद अब आगे के खेल के लिए ये “नयी शिक्षा नीति” लायी गयी है। देश की तमाम शिक्षा प्रणाली एवं शिक्षा तंत्र को “बाज़ार” (अर्थात मनुवादी धंधेबाजों) के हाथों में सौंपने तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को गरीबों की पहुँच से बाहर करने का पूर्वनियोजित खेल है। 


 


अगर कोरोना के मौजूदा “धंधे” की भाषा में इस “नयी शिक्षा नीति” के खेल को समझा जाये तो कुछ ऐसे समझा जा सकता है। जिस तरह कोरोना के नाम पर देश भर में बड़े पैमाने पर गरीबों को हस्पतालों में ठूंस कर उनसे लाखों रुपया ‘इलाज’ के नाम पर जबरन वसूलने का खेल तो एक तरफ है ही, साथ ही साथ कोरोना मरीज की किसी भी कारण “मृत्यु” (कुदरती तौर पर, गलत दवा, इंसानी लापरवाही, किसी अन्य कारण जैसे अन्य बीमारी से संक्रमण अथवा किसी षड्यंत्र के तहत) होने पर उसके महत्वपूर्ण अंगों जैसे गुर्दे, लिवर, आँखें, हृदय, वगैरा को निकाल कर बेचने का सरकारी/निजी “उपक्रम” भी काफी बड़े पैमाने पर बदस्तूर जारी है।  


 


बस कुछ इसी तरह पिछली शिक्षा नीति (RTE-2009) के तहत इस देश की शिक्षा व्यवस्था को पिछले दस वर्षों में पहले तो लगभग “पंगु” कर दिया गया और अब पूरे शिक्षा तंत्र को “पुर्जा-पुर्जा” बेच कर उसे पूरी तरह ध्वस्त करने की तैयारी है। ठीक उसी तरह, जिस प्रकार से देश के व्यापक अर्थतन्त्र के विभिन्न महत्वपूर्ण “पुर्जे” अर्थात विभिन्न सरकारी उपक्रमों को कौड़ियों के भाव बेच कर देश की समूची अर्थव्यवस्था का “अंबानीकरण” करने का एजेंडा मोदी सरकार द्वारा तेजी से कार्यान्वित किया जा रहा है।   


 


मुट्ठीभर अमीरों/मनुवादियों की औलादों के लिए उच्चस्तरीय, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था और बहुसंख्य गरीब लोगों के लिये लचर, महत्वहीन ‘शिक्षा’, यही इस ‘नयी’ शिक्षा नीति का निचोड़ है। इसे शिक्षा का “अंबानीकरण” कहना/समझना कुछ गलत न होगा।   


 


कोरोना मरीजों के गुर्दे, फेफड़े, लिवर आदि चोरी से निकाल कर बेचने वाले देश के शिक्षा तंत्र को बेचने से भला क्या परहेज करेंगे...??  


 


प्रमोद कुरील (पूर्व सांसद-राज्य सभा) 


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